अडूसा या वासा या वसाका, जिसे मालाबार नट ट्री भी कहा जाता है, पूरे भारत में जाना जाता है। यह आयुर्वेदिक और यूनानी दवा में एक प्रसिद्ध औषधीय दवा है। वासा का पौधा एक सदाबहार झाड़ी है जिसके फूल या तो सफेद या बैंगनी रंग में होते हैं। इसका व्यापार नाम वासाका है। यह पूरे भारत में और निचले हिस्से में पाया जाता है।
अडूसा का उपयोग विभिन्न बीमारियों और विकारों के इलाज के लिए किया जाता है, खासतौर से श्वसन रोगों के लिए जैसे खांसी, अस्थमा, साँस की तकलीफ,श्वसन प्रणाली के संक्रमण, आदि। इसमें पाया जाने वाला अल्कोलॉइड वासिसिन नामक अडूसा इसे कफ निस्सारक और ब्रांकोडायलेटर बनाता है।
कफ निस्सारक (बलगम निकालने वाली) और ब्रांकोडायलेटर होने से यह रेस्पिरेटरी रोगों की हर्बल दवा में डाली जाने वाली मुख्य औषधि है। अडूसा के सेवन से शरीर में कफ की मात्रा कम होती है। इससे खांसी, दमा और फेफड़ों में कफ की जमावट कम होती है। यह अस्थमा में भी सहायक है।
वसाका अपने फायदेमंद प्रभावों के लिए चिकित्सा की स्वदेशी प्रणाली में एक प्रसिद्ध जड़ी बूटी है, विशेष रूप से ब्रोंकाइटिस में। इस जड़ी बूटी में म्यूकोलिटिक, ब्रोंकोडाईलेटरी के साथ ब्रोन्कियल फ़ंक्शन का समर्थन करने के गुण हैं। इसकी पत्तियां, छाल, फल, और फूल सभी उपयोगी हैं। वासाका में आंतों के परजीवी को हटाने के गुण भी हैं है। पौधे की पत्तियों में मौजूद अल्कालोइड वासिसिन, छोटे लेकिन लगातार ब्रोंकोडाइलाटेशन के लिए ज़िम्मेदार है। पत्तियों और जड़ों मेंअन्य एल्कोलोइड, वैसीसिनोन, वासिसीनोलोन और वैसीकॉल, शामिल हैं। अम्लपित्त (डिस्पेप्सिया) और पायोरिया के इलाज में भी वासा प्रभावी है। प्लेटलेट बढ़ाने के गुण से यह डेंगू बुखार में फायदेमंद है।
वासा ब्रोंकाइटिस, कुष्ठ रोग, रक्त विकार, दिल की परेशानी, प्यास, अस्थमा, बुखार, उल्टी, मेमोरी कम होना, ल्यूकोडरर्मा, पीलिया, ट्यूमर, मुंह की परेशानी, बुखार, और गोनोरिया में भी प्रयोग किया जाता है।
अडूसा का पौधा
अडूसा Adhatoda vasica Nees परिवार Acanthaceae से संबंधित है। यह एक सदाबहार झाड़ी है।
अडूसा के पौधे की कई लंबी विपरीत शाखाओं होती हैं और उंचाई में यह 1-3 फीट के हो सकते हैं । इसके पौधे पूरे भारतवर्ष में कंकरीली भूमि झाड़ियों के समूह में उगते हैं। इसके पत्ते 7.5 से 20 सेमी तक लंबे और 4 से साढ़े 6 सेमी चौडे़ होते हैं और देखने में अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। पत्ते नोकदार, तेज गंधयुक्त, खुरदरे होते हैं।
फूल स्पाइक्स या पैनिकल्स,छोटे अनियमित zygomorphic, उभयलिंगी, और hypogynous होते हैं। फूल सफेद या बैंगनी रंग के 5 से 7।5 सेमी लंबे होते हैं और गुच्छों में फरवरी-मार्च में लगते हैं। फली रोम सहित 2.5 सेमी लम्बी, चपटी होती है, जिसमें चार बीज होते हैं। तना पीले रंग की छाल युक्त होता है।
- Latin: Adhatoda vasica, syn. Justicia adhatoda–Folium (Acanthaceae)
- Hindi: Adosa, adalsa, vasaka
- Sanskrit: Amalaka, bashika,
- Bengali: Basak
- Tamil: Adatodai
- Marathi: Vasuka
- Telugu: Adasaram
- Malayalum: Ata-lotakam
वासा में एल्कोलोइड की समृद्ध एकाग्रता होती है। वासा की पत्तियों में पाया प्रमुख alkaloid quinazoline है जिसे alkaloid vasicine के रूप में जाना जाता है। वासिसिन के अलावा, वासा की पत्तियों और जड़ों में एल्कोलोइड एल-वासिसिनोन,deoxyvasicine, maiontone, vasicinolone और vasicinol होते हैं। अनुसंधान इंगित करता है कि ये रसायन Adhatoda को ब्रोंकोडाइलेटरी प्रभाव देते हैं।
अडूसा के आयुर्वेदिक गुण
अडू़सा कड़वा, कसैला, शीतल प्रकृति का, स्वर के लिए उत्तम, हल्का, हृदय के लिए गुणकारी, कफ़, पित्त, रक्त विकार (खून के रोग), वमन (उल्टी), सांस, बुखार, प्यास, खांसी, अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना), प्रमेह (वीर्य विकार), पुराना जुकाम और साइनोसाइटिस जैसे रोगों में सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है।
- रस (Taste): तिक्त, कषाय
- गुण (Property): लघु, रुक्ष
- वीर्य (Potency): शीत (ठंडा)
- विपाक (Metabolic Property): कटु
- दोष कर्म (Dosha Action): कफ शामक, पित्त शामक
बायोमेडिकल एक्शन
- कफ नि:सारक: कफ को ढीला करना।
- कासहर: कफ दूओर करना।
- रक्त शोधक: खों साफ़ करना,
- रक्तस्तभ्भन: खून बहना रोकना।
- श्वासहर: अस्थमा में फायदेमंद।
- ह्रदय: दिल के लिए लाभकारी।
अडूसा किन रोगों में फायदेमंद है
- अधिक प्यास लगना
- अस्थमा
- ऊपरी श्वसन संक्रमण
- खांसी
- गले का अल्सर
- गले में खराश
- गले में जलन
- गले में दर्द
- टॉन्सिलिटिस
- ट्यूबरकुलोसिस के कारण पुरानी खाँसी
- दिल का रोग
- नाक से खून निकलना (एपिस्टेक्सिस)
- पुरानी श्वसनीशोध
- साइनसाइटिस
- सामान्य सर्दी जुका
- हृद्शूल
अडूसा के औषधीय हिस्से
इस पौधे की पत्तियां, जड़ें, फूल और स्टेम छाल औषधीय अनुप्रयोगों में उपयोग की जाती हैं।
अडूसा के फायदे
अडूसा को रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन में लेने से फायदा होता है क्योंकि यह कफ को कम करने वाली तथा एंटी बैक्टीरियल जड़ी बूटी है। यह मुख्य रूप से श्वशन अंगों पर असर करती है और जमावट को दूर कर सांस लेना आसान बनाती है। यह ब्रोंकाइटिस, तपेदिक और अन्य फेफड़ों के विकारों की पर्मुख दवाई है। यह साइनसिसिस और साइनस संक्रमण में भी असरदार है।
खांसी और अन्य लक्षणों में फायदेमंद
अडूसा की पत्तियों, जड़ों और फूलों का उपयोग स्वदेशी चिकित्सा में
सर्दी, खांसी, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इसकी पत्तियों का एक काढ़ा खांसी और अन्य लक्षणों के लिए एक हर्बल उपचार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
खांसी के लिए, पौधे की 7 पत्तियों को पानी में उबाला जाता है, और 24 ग्राम शहद के साथ मिलाया जाता है। यह काढ़ा खांसी से राहत प्रदान करता है। इसी प्रकार 12 ग्राम दैनिक दो बार की खुराक में खाए गए वासाका फूलों की एक कन्फेक्शन खांसी से राहत देता है। लगभग 60 ग्राम फूल और 180 ग्राम गुड़ को मिलाकर यह कन्फेक्शन तैयार होता है।
खांसी में अडूसा के पत्तों का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर दिन में 3 बार 2-2 चम्मच की मात्रा में ले सकते हैं।
अथवा अडूसा चूर्ण 2 ग्राम, सितोपलादि चूर्ण 2 ग्राम को शहद 1 चम्मच में मिलाकर लेना चाहिए।
गला बैठ जाए तो अड़ूसे के रस में तालीस-पत्र का चूर्ण और शहद मिलाकर खाने से स्वर भंग (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
ब्रोंकाइटिस और अस्थमा में करे फायदा
ब्रोंकाइटिस के तीव्र चरणों में यह सफल राहत देता है। खासकर जहां कफ थिक और चिपचिपा हो। यह कफ को तरलता देता है ताकि इसे अधिक आसानी से निकाला जा सके। अस्थमा में राहत के लिए, सूखे पत्तियों को धूम्रपान किया जाना चाहिए।
ब्रोंकाइटिस के तीव्र चरणों में, वासाका लेने से राहत मिलती है क्योंकि यह चिपचिपे कफ को तरल बनाता है ताकि इसे शरीर से अधिक आसानी से निकाला जा सके।
ब्रोंकाइटिस और अस्थमा में इसकी जड़ और छाल का काढ़ा 30 ग्राम की खुराक में दो बार या तीन बार, 3 दिन के लिए दिया जा सकता है। इसकी ताजा पत्तियों का रस भी इस्तेमाल किया जा सकता है जिसे दिन में तीन बार एक चम्मच की खुराक में लेना चाहिए।
अस्थमा में अडू़सा, अंगूर और हरड़ के काढ़े को शहद और शर्करा में मिलाकर सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से लाभ मिलता है।
यक्ष्मा क्षय (टीबी।)
आयुर्वेद में, वसाका फूलों का गुलकंद तपेदिक का इलाज करने के लिए प्रयोग किया जाता है। वासाका फूलों के कुछ ताजा पंखुड़ियों को कुचल कर एक जार में डाल कर चीनी डाल देते हैं और इस जार सूरज में रखा जाता है। यह लगभग एक महीने में उपयोग के लिए तैयार है।
यहां तक कि तपेदिक के इलाज में भी इसकी पत्तियों का रस उपयोगी होता है। रस का लगभग 30 मिलीलीटर है शहद के साथ एक दिन में तीन बार लिया जाता है।
सर्दी में लाभप्रद
सर्दी में वसाका के पत्ते का रस लेने से गले में जलन को कम करने में मदद मिलती है और यह वायुमार्ग में जमें कफ को ढीला कर सांस लेना आसान बनाता है।
इससे बना वासावलेह लिया जा सकता है अथवा आप अडूसा 1 ग्राम, सितोपलादि चूर्ण 1 ग्राम, पुनर्नवा चूर्ण 1 ग्राम, त्रिकटु चूर्ण 125 मिलीग्राम और शहद 1 चम्मच को मिलाकर ले सकते हैं।
ब्लीडिंग को रोके
अडूसा का उपयोग पेप्टिक जैसे आंतरिक और बाहरी रक्तस्राव दोनों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। इसे अल्सर, पाइल्स, गर्भाशय से रक्तस्राव, मसूड़ों से खून बहना आदि में प्रयोग करते हैं।
पत्तियों की पोल्टिस अपने जीवाणुरोधी और एंटीफ्लैमेटरी की तरह घावों पर लागू की जा सकती है।
यदि गर्भाशय से अधिक ब्लीडिंग हो रही है तो अडूसा के पत्तों को कूट कर 10 मिलीलीटर या 50 मिलीलीटर रस निकाल लें और शहद मिला कर पी लें अथवा पत्तों से काढ़ा बनाकर उस में 10 ग्राम मिश्री मिला कर पियें। ऐसा एक महीने करें।
नाक से खून गिरता हो तो अडूसा के रस 5 ग्राम, द्राक्षा 5 ग्राम और हरीतकी फल का गुदा 5 ग्राम को आधा लीटर पानी में पकाएं । जब पानी चौथाई रह जाए तो इसे ठंडा होने दें। अब इस काढ़े में एक चम्मच शहद मिलाएं और दिन में दो बार पीएं।
अड़ूसा की जड़ की छाल और पत्तों का काढ़ा बराबर की मात्रा में मिलाकर 2-2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन कराने से नाक और मुंह से खून आने की तकलीफ दूर होती है।
शरीर करे साफ़
- यह जड़ी बूटी एंटीस्पाज्मोडिक, प्रत्यारोपण और रक्त शुद्ध करने वाले गुण प्रदर्शित करती है।
- शरीर में यूरिया के स्तर के बढ़ जाने पर 50 मिलीलीटर अडूसा की जड़ का काढ़ा बना कर पियें।
- फोड़े-फुंसियों में अडूसा की पत्तों का पेस्ट बनाकर बांधे।
प्रसव कराए आसान
प्रसव के दौरान प्रसव की गति के लिए आधातोदा वासिका का भी उपयोग किया जाता है।
कीड़े करे नष्ट
अडूसा की पत्तियां, छाल, जड़-छाल, फल और फूल,आंतों के परजीवी हटाने में उपयोगी होते हैं। इसकी जड़ और छाल का काढ़ा 30 ग्राम की खुराक में दो बार या तीन बार तीन बार दिए जा सकते हैं।
अडूसा की ताजा पत्तियों का रस एक चम्मच की खुराक में दिया जा सकता है जिसे 3 दिनों तक दिन में तीन बार दिया जाना चाहिए।
दस्त और पेचिश को रोके
दस्त के इलाज में अडूसा की पत्तियों से रसको 2 से 4 ग्राम की खुराक में दिया जाना चाहिए।
चर्म रोग में फायदेमंद
ताजा घावों, संधिशोथ पर लाभकारी परिणामों के लिए इसकी पत्तियों का एक पोल्टिस लागू किया जा सकता है। इससे जोड़ों में दर्द और सूजन में आराम होता है। इसकी पत्तियों का एक गर्म काढ़ा भी खरोंच और अन्य त्वचा रोग इलाज में उपयोगी है।
खुजली होती है तो अडूसे के नर्म पत्ते और आंबा हल्दी को गो मूत्र में पेस्ट बना कर लगायें।
मुंह के छाले हो तो अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है। पत्तों को चूसने के बाद थूक देना चाहिए।
उपयोग और डोज़ बनाने के तरीके
अडूसा या वसाका का दवाई की तरह इस्तेमाल अक्सर अदरक और शहद के साथ किया जाता है।
पत्तों को कूट छान कर रस निकालते हैं जिसे दवा की तरह से लेते हैं या सूखे पत्तियों के काढ़े को बना आकर पीते हैं।
इसके फूल और पत्तों का ताजा रस 10 से 20 मिलीलीटर (2 से 4 चम्मच), जड़ का काढ़ा 30 से 60 मिलीलीटर तक तथा पत्तों, फूलों और जड़ों का चूर्ण 10 से 20 ग्राम तक ले सकते हैं।
सेफ्टी प्रोफाइल
अडूसा अनुशंसित उपयोग और खुराक में सुरक्षित माना जाता है।
बच्चों में प्रयोग
इस जड़ी बूटी की सुरक्षा का बच्चों में परीक्षण नही किया गया है और जब तक एक चिकित्सकीय पेशेवर द्वारा निर्देशित नहीं किया जाता है, तब से बचा जाना चाहिए।
गर्भावस्था में प्रयोग
गर्भावस्था के दौरान इस पूरक की सिफारिश नहीं की जाती है (प्रसव के अलावा)।
Adhatoda vasica में गर्भ गिराने के गुण हैं जिससे यह गर्भपात को प्रेरित कर सकता है और गर्भाशय को उत्तेजित करता है।
प्रसव के लिए संकुचन
मानव पर अध्ययन विषयों ने दिखाया है कि अल्कालोइड वासिसिन में महत्वपूर्ण गर्भाशय गतिविधि है। यह क्रिया प्रभावित होती है कुछ estrogens की उपस्थिति या अनुपस्थिति से । गतिविधि पर शोध में इसके उपयोग से गर्भाशय संकुचन देखा गया। शोध अवधि के दौरान, विरोधी प्रजनन गुण भी देखा गया।
पशु अध्ययनों ने भी वैसीका के गर्भपात कराने के गुण का प्रदर्शन किया है। जलीय या 90% इथेनॉल संयंत्र एक्सट्रेक्ट, का मौखिक रूप से गर्भधारण के 10 दिनों के बाद चूहों और गिनी पिग्स में परीक्षण करने पर के पत्ते का असर 100% गर्भपातक था।
साइड इफेक्ट्स और संभावित इंटरैक्शन
पौधे से प्राप्त वासिसिन और क्षारीय के ऑक्सीटोकिक और गर्भपात संबंधी प्रभावों पर कई वैज्ञानिक रिपोर्ट सामने आई हैं।
इससे वात बढ़ सकता है।
इसे केवल शोर्ट तरेम के लिए लेना चाहिए। इसे अधिकतम 6 सप्ताह तक ले सकते हैं।