अश्वगंधारिष्ट Ashwagandharishta Aswagandharishtam को सिंकोप (मस्तिष्क में अपर्याप्त रक्त प्रवाह से संबंधित चेतना का अस्थायी नुकसान, इसे फेंटिंग या “पासिंग” भी कहा जाता है। यह अक्सर तब होता है जब रक्तचाप बहुत कम हो जाता है (हाइपोटेंशन) और दिल मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन पंप नहीं करता), मिर्गी, कैचेक्सिया (वेस्टिंग सिंड्रोम, मांसपेशियों में कमी, थकान, कमजोरी और भूख की कमी), पागलपन, कमजोरी, पाइल्स, पाचन की कमजोरी और वायु रोगों में दिया जाता है।
अश्वगंधारिष्ट के फायदे
अश्वगंधारिष्ट आयुर्वेदिक अरिष्ट है जो एक सिरप है। इसमें ताकत देने से गुण है। इसके सेवन से शरीर, मांसपेशियों, पाचन और दिमाग को ताकत मिलती है। शरीर और दिमाग में ताजगी आती है और नसें मजबूत होती है। यह हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े, और मांसपेशियों को बल देने वाली दवा है।
अश्वगंधारिष्ट दूर करे मानसिक तनाव
अश्वगंधारिष्ट को लेने से दिमाग की नसों को ताकत मिलती है और तनाव दूर होता है। अश्वगंधारिष्ट में तनाव, अवसाद और चिंता का इलाज करने के गुण है। इसमें एंटी-तनाव गुण है। यह कोर्टिसोल स्तर को कम कर सकता है। कोर्टिसोल को ” तनाव हार्मोन” के रूप में जाना जाता है क्योंकि आपके एड्रेनल ग्रंथियां तनाव के जवाब में इसे छोड़ देती हैं। अध्ययनों से पता चला है कि अश्वगंध कोर्टिसोल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है।
अश्वगंधारिष्ट दिमाग को दे ताकत
अश्वगंध मेमोरी सहित मस्तिष्क समारोह में सुधार कर सकती है । यह स्मृति और मस्तिष्क कार्य सम्बंधित समस्याओं को कम कर सकता है। अश्वगंध की खुराक मस्तिष्क कार्य, स्मृति, प्रतिक्रिया समय और कार्यों को करने की क्षमता में सुधार कर सकती है।
अश्वगंधारिष्ट करे कमजोरी दूर
अश्वगंधारिष्ट एक बल्य औषधि है। इसे लेने से दिमाग और शरीर दोनों को ही ताकत मिलती है। यह मानसिक रोगों जैसे दिमागी कमजोरी, उन्माद, तनाव, अवसाद (डिप्रेशन), चिंता आदि में फायदा करती है।
अश्वगंधारिष्ट के शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट गुण होने से यह उम्र बढ़ने और कई बीमारियों के लिए जिम्मेदार मुक्त कणों को खोजते और नष्ट करती है।
अश्वगंधारिष्ट करे भूख और पाचन में सहयोग
अश्वगंधारिष्ट में दीपन-पाचक गुण है जिससे पाचक रसों का स्राव ठीक से होता है, मन्दाग्नि दूर होती है और भोजन सही से पचने लगता है।
अश्वगंधारिष्ट से दूर होते वात रोग
अश्वगंधारिष्ट उत्तम वातनाशक है। इसमें आम विष को नष्ट करने के गुण है। इसके सेवन से वात रोगों जैसे जीर्ण आमवात (पुराने रोग) में फायदा होता है।
अश्वगंधारिष्ट के गुण और उपयोग
अश्वगंधारिष्ट में निम्न औषधीय गुण है:
- अनुलोमन
- अर्शोघ्न
- आक्षेपशमन
- ओजवर्धक
- गर्भाशयसंकोचक
- जीवनीय
- दिल को ताकत देने वाला
- दीपन
- निद्राजनन
- पाचन बढ़ाने वाला
- पीड़ाहर (दर्द निवारक)
- प्रजास्थापन
- बल्य
- बृहण
- भूख बढ़ाने वाला
- रसायन
- वाजीकरण
- शुक्रजनन
- शुक्रवर्धन
- शुक्रशोधन
- शुक्रस्तम्भन
- शोथहर
- श्रमहर
- स्मरण शक्ति वर्धक
अश्वगंधारिष्ट निम्न रोगों में दी जाती है:
मानसिक विकार
- मानसिक दुर्बलता
- याददाश्त में कमी
- उन्माद मनोविकृति, दुर्बलता
- बेहोशी, मिर्गी
- तनाव
- अवसाद
- अनिद्रा
पुरुषों के रोग
- स्तंभन दोष
- अल्पशुक्राणुता
- नामर्दी
- वीर्य की कमी
- पाचन के रोग
पाचन की कमजोरी
बवासीर
तथा इन रोगों में
- शारीरिक दुर्बलता
- तंत्रिका तंत्र की दुर्बलता
- वात रोग (मस्तिष्क संबंधी विकार), आमवात
- कम रोगप्रतिरोधक क्षमता
- हिस्टीरिया
अश्वगंधारिष्ट के नुकसान
अश्वगंधारिष्ट कुछ लोगों में पेट में जलन या एसिडिटी कर सकती है। ऐसे में इसकी कम डोज़ का सेवन करके देखें।
यह दवा गर्भवती को नहीं लेनी चाहिए।
अश्वगंधारिष्ट की खुराक
अश्वगंधारिष्ट को 12-24 मिलीलीटर की डोज़ में ले सकते हैं।
कैसे लें
- अश्वगंधारिष्ट को पानी की बराबर मात्रा के साथ-साथ मिलाकर लेना चाहिए।
- इसे सुबह नाश्ते के बाद और रात्रि के भोजन करने के बाद लें।
- इस दवा को 3 महीने या उससे अधिक समय तक लें या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
अश्वगंधारिष्ट का फार्मूला
- अश्वगंधा 2400 ग्राम
- सफ़ेद मूसली 960 ग्राम
- मंजिष्ठ 480 ग्राम
- हरीतकी 480 ग्राम
- हल्दी 480 ग्राम
- दारुहल्दी 480 ग्राम
- मुलेठी 480 ग्राम
- रसना 480 ग्राम
- विदारीकंद 480 ग्राम
- अर्जुन की छाल480 ग्राम
- नागरमोथा 480 ग्राम
- निशोथ 480 ग्राम
- अनंतमूल सफ़ेद 384 ग्राम
- अनंतमूल काला 384 ग्राम
- सफ़ेद चन्दन 384 ग्राम
- लाल चन्दन 384 ग्राम
- बच 384 ग्राम
- चीते की छाल 384 ग्राम
- सोंठ 96 ग्राम
- मिर्च 96 ग्राम
- पीपल 96 ग्राम
- दालचीनी 192 ग्राम
- तेजपत्ता 192 ग्राम
- इलायची 192 ग्राम
- नागकेशर 96 ग्राम
- प्रियंगु 192 ग्राम
- शहद 9।6 किलो
- पानी लगभग 100 लीटर
- धाय के फूल 768 ग्राम
अश्वगंधारिष्ट बनाने का तरीका
अश्वगंधा की जड़, सफ़ेद मूसली, मंजिष्ठ,हरड़, हल्दी, दारुहल्दी, मुलेठी, रसना, विदारीकंद, अर्जुन की छाल, नागरमोथा, निसोथ, अनंतमूल सफ़ेद, अनंतमूल काला, सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन, बच, चीते की छाल को कूट कर पानी में उबालें। जब जल का आठवां हिस्सा रह जाए तो इसे आग से उतार कर छान लें।
ठन्डे होने के बाद इस काढ़े में धाय के फूल, शहद, त्रिकुट (सोंठ, मिर्च, पीपल), त्रिजात (दालचीनी, तेजपत्ता, इलायची), नागकेशर और प्रियंगु मिलाएं।
अच्छी तरह मिलाने के बाद इस पात्र को अच्छी तरह बंद करके दो महीने के लिए संधान करें।
उपलब्ध ब्रांड
- बैद्यनाथ
- डाबर
- पतंजलि
- सांडू ब्रदर्स
- Dhootapapeshwar।