गुर्दे की पथरी जिसे किडनी स्टोन या नेफ्रोलिथियसिस, यूरोलिथियसिस कहते हैं वह मेडिकल कंडीशन है जिसमें गुर्दे या मूत्र पथ के भीतर क्रिस्टलीय खनिज सामग्री गठित हो जाती है। गुर्दे के पथरी कठोर, कंकड़ की होते हैं जो और एक या दोनों गुर्दे में हो सकते हैं। किडनी पत्थरों का आकार भिन्न होता है। वे रेत के अनाज के रूप में छोटे या मटर के रूप में बड़े हो सकते हैं। कुछ मामलों में किडनी के पत्थर गोल्फ गेंद जितने बड़े हो सकते हैं। गुर्दे के पत्थर चिकने या जालीदार हो सकते हैं और आमतौर पर पीले या भूरे रंग के होते हैं।
गुर्दे की पथरी के कारण
गुर्दे की पथरी के चार मुख्य प्रकार है, कैल्शियम स्टोन, यूरिक एसिड स्टोन, Struvite स्टोन और सिस्टीन स्टोन। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में गुर्दे की पथरी होने की अधिक संभावना होती है। यदि किडनी पत्थरों का पारिवारिक इतिहास है, तो आप उन्हें विकसित करने की अधिक संभावना रखते हैं। यदि आपको एक बार पथरी हुई है तो आप फिर से गुर्दे के पथरी को विकसित करने की अधिक संभावना रखते हैं।
कुल्थी की दाल को हॉर्सग्राम horsegram के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसे घोड़े को खिलाते हैं। इसे कन्नड़ में हुरलि, तमिल में कोल्लू और तेलुगु में उलवालु कहते हैं। हिंदी में इसे कुल्थी, कुलथी, या कुलथ कहते हैं। आमतौर पर एशिया में इसे भोजन और चारा के रूप में उपयोग किया जाता है। यह लोहे का एक उत्कृष्ट स्रोत है। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में एलएम सिंह और पी कुमार के द्वारा शोध पत्र में लेखकों ने पाया कि कुल्थी मनुष्यों में गुर्दे के पत्थरों को भंग करने में प्रभावी है। भारत के आयुर्वेदिक फार्माकोपिया कैलकुस और पीरियड्स नहीं आना (अमेनोरेरिया) में सूखे बीज के काढ़े की सिफारिश करता है।
भारत में किडनी की पथरी में कुलथी दाल का इस्तेमाल लाभकारी माना जाता है। कुलथी में डाइयुरेटिक और पथरी का भेदन करने के गुण है। कुल्थी यकृत व प्लीहा के दोष में लाभदायक है। कुल्थी दाल पित्त को बढ़ाती है और कफ को कम करती है।
कुल्थी के 100 ग्राम में प्रोटीन 22 %, कार्बोहायड्रेट 57%, और आयरन 8 % होता है। इसमें फॉस्फोरस, मिनरल्स और फाइबर भी पाया जाता है। इसमें क्रूड प्रोटीन की मात्रा बिन्स ग्राम और सोयाबीन के बराबर है। प्रोटीन हॉर्सग्राम का सबसे महत्वपूर्ण घटक है, जो जड़ी-बूटियों को चिकित्सीय गुण देता है। कुलथी गुर्दे, मूत्राशय और पित्त पत्थरों के इलाज में फायदेमंद है. इसके एंथेलमिंटिक गुणों के कारण, यह अमीबिक दस्त और कोलिक दर्द के इलाज में उपयोगी होता है।
किडनी के स्टोन में कैसे करें कुल्थी का प्रयोग
- कुल्थी दाल 25 ग्राम लें और इसे अच्छे से साफ़ कर लें।
- रात को दाल को साफ़ पानी से अच्छे से धो लें।
- धोने के बाद इसे पीने के आधा लीटर पानी में भिगो दें। सुबह इसी पानी को उबाल आकर काढ़ा बनाना है इसलिए साफ़ पानी ही लें।
- इसे रात भर भिगो कर रखें।
- सुबह भीगी हुई कुल्थी उसी पानी सहित धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब पानी चौथाई रह जाए। इसमें हल्दी, काली मिर्च थोडा नमक मिलाएं। अब इसे उतार लें।
- देसी घी में जीरा से छौंक लगाएं।
- दिन में दो बार, सुबह शाम इसे लें। ऐसा तब तक करें जब तक पथरी निकल नहीं जाए।
- अगर काढ़ा नही बनाना चाहते तो मुट्ठी भर साफ़ दाल को रात में एक गिलास साफ़ पानी में भिगो कर रख लें और सुबह पानी पी जाएँ। ऐसे ही सुबह करके शाम को पी लें।
- एक-दो सप्ताह में गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी गल कर बिना ऑपरेशन के बाहर आ जाती है, लगातार सेवन करते रहना राहत देता है।
- साथ ही, हिमालय ड्रग कंपनी की सिस्टोन की दो गोलियां दिन में 2-3 बार प्रतिदिन लेने से शीघ्र लाभ होता है।
- कुछ समय तक नियमित सेवन करने से पथरी टूट-टूट कर बाहर निकल जाती है।
साइड इफेक्ट्स – सावधानियां – किसे नहीं खानी चाहिए
- कुल्थी की दाल से पित्त बढ़ता है। इसलिए खून बहने के विकार, एसिडिटी, पेट में जलन, खट्टी डकार, पेट के अल्सर में इसे नहीं लेना चाहिए।
- कुल्थी के सेवन से एसिडिटी हो सकती है।
- जिन लोगों में नकसीर अक्सर फूटती है, स्त्रियों में अबनार्मल ब्लीडिंग होती है, वे इसे नहीं लें।
- इसे पीरियड में नहीं लें यदि इससे ब्लीडिंग ज्यादा होने लगे।
- जिनके पीरियड्स जल्दी जल्दी आते हैं और ब्लीडिंग ज्यादा होटी है वे भी इसे नहीं लें।
- जिन पुरुषों को बच्चा होने में दिक्कत आ रही है, इनफर्टिलिटी का ट्रीटमेंट ले रहें हैं वे इसका सेवन नहीं करें। इससे कीटों की गुणवत्ता और संख्या खराब हो सकती है।
- इसे शिलाजीत के सेवन के समय नहीं लें।
- जो वज़न कम करने की कोशिश कर रहें वे इसे कम मात्रा में लें या नहीं लें।