बैद्यनाथ कनकासव के फायदे, नुकसान, उपयोग विधि और प्राइस

जानिये बैद्यनाथ कनकासव का अस्थमा, खांसी और स्वांस के रोगों में उपयोग, लाभ और लेने का तरीका।

बैद्यनाथ कनकासव सभी तरह की खांसी में उपयोगी दवा है। इसे पीने से शरीर में कफ कम होता है। आसव होने से यह दीपन और पाचन भी है। बैद्यनाथ कनकासव में धतूरा, वासा, मुलेठी, पीपली, कंटकारी, नागकेसर, सोंठ, भारंगी, तालिस्पात्रा, मुनक्का, मधु, धाताकी आदि हैं। कनकासव एक तरल आयुर्वेदिक दवा है, तथा अस्थमा, खांसी, बुखार आदि के इलाज में दी जाती है।

इसमें 5 से 10% स्वयं उत्पन्न अल्कोहल पाया जाता है। यह स्वयं उत्पन्न अल्कोहल सक्रिय हर्बल घटकों को घुलनशील करने के लिए एक मीडिया के रूप में कार्य करता है। यह एक ब्रोंकोडाइलेटर है। यह चोटों और पुराने बुखार के इलाज में भी प्रयोग किया जाता है। यह छाती में जमे श्लेष्म से छुटकारा पाने में मदद करता है।

उपयोग की मात्रा और सेवन का तरीका

कनकासव को आप 12 से 24 मिलीलीटर की मात्रा में ले सकते हैं। जब आप सुबह का नाश्ता कर लें तो इसे पानी की बराबर मात्रा मिला कर लें। इसी तरह रात के खाने के बाद भी इसे लें।

कनकासव के संकेत

कनकासव को डिफिकल्ट ब्रीदिंग और कफ में दिया जाता है। इसे पीने से कफ, श्वांस, खांसी, अस्थमा, सीने में कफ जमना, सांस की समस्या, टीबी, रक्तपित, क्रोनिक फीवर आदि में फायदा होता है। कनकासव में मुख्य द्रव्य कनक अथवा धतूरा है।

  • अस्थमा
  • कफ
  • कास
  • छाती में चोट से कमजोरी
  • टीबी
  •  ब्रोंकाइटिस
  • सांस के रोग
  • हिचकी

कनकासव के फायदे

कनकासव में ब्रोंकोडाइलेटर, एनाल्जेसिक, सीडेटिव, सूजन कम करने, कार्डियक उत्तेजक, म्यूकोलिटिक गुण हैं जिससे यह ब्रोंकायल अस्थमा और खांसी के तीव्र हमले में उपयोगी है। खांसी, क्षय रोग, क्रोनिक बुखार आदि इसके सेवन से ठीक होते हैं।

सांस रोगों में उपयोगी

कनकासव कास और श्वास की अच्छी आयुर्वेदिक दवा है। इसमें मौजूद द्रव्य सांस नाली की सूजन को दूर करते हैं जिससे सांस लेना सुगम होता है। यह जमे हुए कफ को भी ढीला करने वाली दवा है। यह अस्थमा के एक गंभीर हमले से राहत देता है और ब्रोन्कियल मार्गों को फैलाने और आराम करके फेफड़ों में वायु प्रवाह को बढ़ाता है। टीबी रोग में भी इसका सेवन फायदेमंद होता है।

कफ को करे दूर

गर्म तासीर के होने से यह खांसी एवं जमे हुए कफ को दूर करने वाली औषध है। यह छाती में जमे हुए कफ एवं संक्रमण को दूर करतीवा है। इसे ब्रोंकाइटिस, उत्पादक खांसी, फेफड़ों की चोट आदि में भी लिया जाता है।

पाचन में करे मदद

कनकासव के सेवन से पाचक रसों का स्राव होता है जिससे भूख लगती है और पाचन ठीक होने लगता है।

कनकासव के साइड इफेक्ट्स और सावधानियां

  • कनकासव में धतूरा है। इसलिए इसे केवल और केवल आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
  • कनकासव का उपयोग कम मात्रा में करना चाहिए। अधिकता में सेवन कुछ गंभीर दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है।
  • इसके सेवन से शरीर में गर्मी आती है, पित्त बढ़ता है, और इसलिए पित्त की अधिकता वाले लोगों को यह नहीं लेनी चाहिए।
  • इसे लम्बे समय तक नहीं लेना है।
  • अधिक खुराक लेने से पेट की जलन और ढीले मल हो सकता है।
  • यह हर्बल उत्पाद केवल आयुर्वेदिक डॉक्टर के परामर्श के बाद लिया जाना चाहिए।
  • इसे सरदर्द, जी मिचलाना, उल्टी, बेचैनी आदि हो सकता है।

कब नहीं लें

  • गर्भावस्था
  • स्तनपान
  • 5 साल से कम उम्र के बच्छे

कनकासव का फार्मूला

  • कनक धतूरा 192 ग्राम
  • मुलेठी 96 ग्राम
  • पिप्पली 96 ग्राम
  • वासा 96 ग्राम
  • कंटकारी 96 ग्राम
  • नागकेशर 96 ग्राम
  • भारंगी 96 ग्राम
  • सोंठ 96 ग्राम
  • तालिसपत्र 96 ग्राम
  • धातकी पुष्प 768 ग्राम
  • मुन्नका 960 ग्राम
  • शहद 2 .400 किलोग्राम
  • शक्कर 4.800 किलोग्राम
  • जल 24.576 किलोग्राम

निर्माण विधि

  • कनकासव बनाने के लिए क्रम संख्या 1 से 10 तक के द्रव्यों को लेकर इनका यवकूट (जौ के सामान) चूर्ण करें।
  • मुन्नका कूट लें।
  • संधान पात्र में शुद्ध जल डालकर शर्करा एवं शहद को अच्छी तरह मिला लें।
  • फिर बाकी सभी द्रव्यों के चूर्ण को डालकर पात्र का मुख अच्छी तरह बंद करे।
  • महीने भर के बाद छान कर बोतलों में भर लें।

One Comment

  1. सुघीर जैन

    शुगर के मरीज इसका सेवन कर सकते है क्या ?????

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