आँतों में कीड़े एक कॉमन स्वास्थ्य समस्या है। आँतों में मौजूद कृमि पाचन में गड़बड़ियां करते हैं और त्वचा रोगों को भी बढ़ाते हैं। कृमि शरीर में मुख्य रूप से दूषित भोजन और पानी से प्रवेश पा जाते हैं और फिर तेजी से गुणन करके अपनी संख्या में वृद्धि कर लेते हैं। कई बार हमें पता भी नहीं लगता कि पेट में कीड़े हैं। जब बार बार हमे अपच, मतली, उलटी, खांसी, खून की समस्या होने लगती हैं तब लगता है कुछ तो गड़बड़ है। पेट की कीड़े से गैस बहुत बनती और पेट फूलता है। कई बार तो भूख लगना भी बंद हो जाती है और उल्टियां होने लगती है।
अगर आपको भूख नहीं लगती, पेट में गैस बहुत बनती है, दर्द होता है, मतली-उलटी होती है तो आपको पेट में कीड़े का संदेह करना चाहिए। ऐसा तब और ज़रूरी हो जाता है जब आप कही बाहर काम करते हैं, बाहर के टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं और और आपको बाहर का खाना-पानी लेना पड़ता है।
आयुर्वेद में एलोपैथिक दवाओं की तरह तेज काम अकरने के लिए रस रसायन बनाये गए हैं। इन रस औषधियों में आयुर्वेदिक विधि से तैयार मरकरी और सल्फर के कंपाउंड होते हैं जो इनको योगवाही बनाते हैं। ऐसी ही पेट के कीड़ों के लिए तैयार दवा है, कृमिकुठार रस। कृमिकुठार रस कृमि व उससे संबंधित तकलीफें दूर करने में सहायक है। यह वात और कफ दोष को संतुलितकरने वाली दवा है।
कृमिकुठार रस के लाभ
कृमिकुठार रस, एक आयुर्वेदिक दवा है जो कृमियों को नष्ट करने में मदद करती है। कृमि में परजीवी, सूक्ष्मजीव, कीड़े, वायरस, बैक्टीरिया आदि आते हैं। कृमिकुठार रस में एनाल्जेसिक, एंटीबैक्टीरियल, जर्मीसाइड, एंथेलमिंटिक और कई अन्य गुण हैं जो कई तरह के कृमियों को नष्ट करते हैं।
कृमि करे नष्ट
आंतों के कीड़े या आंतों के परजीवी संक्रमण में हुकवार्म, पिनवार्म, गिनी कीड़े, थ्रेडवार्म और फ्लूक आदि आते हैं जो आतों में रह कर पूरे स्वास्थ्य पर नेगेटिव असर डालते हैं। अगर आतों में पैरासाइट हो जाएँ तो कीड़े और उनके लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है। आपको मतली, उलटी, दस्त, सूजन, थकान, अस्पष्ट वजन घटना, पेट में बेचैनी कोमलता या आदि लक्षण हो सकते हैं।
कृमिकुठार रस, एक मजबूत एंटी-वर्म एजेंट है, जो कीड़े और उससे संबंधित लक्षणों और लक्षणों को खत्म करने में आपकी सहायता करता है।
एंटीबैक्टीरियल एक्शन
कृमिकुठार रस में एंटीबैक्टीरियल एजेंट हैं जो रोगजनक के प्रसार की अनुमति नहीं देते हैं, इस प्रकार यह जीवाणु संक्रमण को रोकता है।
कम करे कफ
कृमिकुठार रस को लेने से वात और कफ में कमी आती है। यह कृमियों के कारण होने वाले त्वचा विकारों में भी फायदा होता है।
बढाये भूख
आँतों के कीड़े होने से भूख नहीं लगती. हमेशा गैस, जी मिचलाना और उलटी लगती है। जब कृमिकुठार रस को लेते हैं तो कीड़े नष्ट होते हैं और भूख नहीं लगने की समस्या दूर होती है।
कृमिकुठार रस की डोज़
जब दवा की खुराक की बात आती है, तो सबसे पहले, इस दवा को लेने से सावधानी बरतनी चाहिए और इस दवा से अपने आप उपचार नहीं शुरू कर देना चाहिए बल्कि डॉक्टर की सलाह से ही ऐसा किया जाना चाहिए । इस दवा की एक दिन में 1-2 गोलियों की खुराक या 125-250 मिलीग्राम की खुराक ली जा सकती हैं। इस दवा को पानी के साथ निगल कर लें।
- यह विशेष रूप से काले नमक के साथ भोजन के बाद ली जानी चाहिए।
- इसे डॉक्टर के पर्चे के आधार पर 1 महीने तक इस्तेमाल किया जा सकता है।
कृमिकुठार रस के दुष्प्रभाव
- कृमिकुठार रस से कब्ज़ हो सकती है।
- कृमिकुठार रस को डॉक्टर की सलाह पर ही लें। इसमें मरकरी, सल्फर आदि हैं जो अधिकता में लिए जाने पर साइड इफेक्ट्स कर सकते हैं।
- कृमिकुठार रस को डॉक्टर की सलाह के अनुसार सटीक खुराक में और समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- इस दवा की ओवर डोज़ के टॉक्सिक इफ़ेक्ट संभावित हैं।
कृमिकुठार रस निषेध अथवा कौन नहीं ले
- गर्भावस्था, स्तनपान की अवधि के दौरान इसका प्रयोग ना करें।
- यह दवा बच्चों को ना दें। 6 साल से बड़े बच्चे को देना है तो डॉक्टर की सलाह पर ही दें।
संरचना
इस फॉर्मूलेशन में मौजूद सामग्री नीचे दी गई है:
- पलाश बीज 15 पार्ट्स
- कपूर 8 पार्ट्स
- कुटज 1 भाग
- त्र्यमान 1 भाग
- अजमोडा 1 भाग
- विडंग 1 भाग
- हिंगुल 1 भाग
- वत्सनाभ 1 भाग
- नागकेशर 1 भाग
- भवाना के लिए विजया रस क्यूएस
- भवाना के लिए मुशकपर्णी क्यूएस
- भवाना के लिए ब्रह्मी रस क्यूएस
विजया रस कैनाबीस सतीव लिन के पत्ते के रस को संदर्भित करता है जिसे भारतीय भांग, ट्रू हंप, सॉफ्ट हेम, भांग या कैनबिस भी कहा जाता है। कैनबिस का पत्ता कड़वा, अस्थिर, टॉनिक, एफ़्रोडायसियाक, अल्टरेटिव, नशे की लत, पेटी, एनाल्जेसिक और गर्भपात करने वाला होता है और आवेग, ओटलिया, पेटी की अंगूठी, मलेरिया बुखार, डाइसेंटरी, दस्त, त्वचा रोग, हिस्टीरिया, अनिद्रा, गोनोरिया, कोलिक, टेटनस और हाइड्रोफोबिया में उपयोग किया जाता है।