आयरन की कमी दुनिया भर में एक बहुत ही आम पोषण संबंधी विकार है। लौह भस्म loha Bhasma, loha Bhasma को खून की कमी के कारण हुए अनेमिया में लेने से लाभ होता है। लोहे की कमी से दुर्बलता, धातु- दौर्बल्य, सूजन, और लीवर की समस्या में भी इसे लेने से फायदा होता है। साथ ही शरीर में सूजन, मोटापे, संग्रहणी, मंदाग्नि, प्रदर, कृमि, कुष्ठ, उदर रोग, आमविकार, क्षय, ज्वर, हृदयरोग, बवासीर, रक्तपित्त, आदि अनेक रोगों में इसे लेना हितकारी है।
लोह भस्म एनीमिया, पांडू और अन्य खून की कमी से होने वाली की समस्याओं का इलाज करता है। असंतुलित आहार और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली लोहे की कमी, पाचन में बाधा उत्पन्न करती है और यकृत को कमजोर करती है। लोह भस्म में प्राकृतिक हर्बल अवयव लोहे की खुराक के रूप में काम करते हैं, जो एनीमिया का इलाज करते हैं, पाचन एंजाइमों के प्रवाह को उत्तेजित करके पाचन को बढ़ावा देते हैं और इस प्रकार जिगर को फिर से जीवंत करते हैं। लोह भस्म आपको पेट और यकृत विकारों से समग्र उपचार देता है।
लौह भस्म क्या है और इसके फायदे
लौह भस्म आयरन का ऑक्साइड है। यह व्यापक रूप से आयुर्वेदिक hematinic एजेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है और एक जटिल herbomineral तैयारी है। यह पुराने बुखार, फाथिसिस (क्षय), सांस लेने में दिक्कत इत्यादि के लिए एक प्रभावी उपाय है। इसमें जीवन शक्ति को बढ़ावा देने, वाजिकारक, ताकत को बढ़ावा देने और एंटी ऐजिंग गुण हैं।
लौह भस्म का सेवन शरीर को ताकत देता है और रक्त धातु की वृद्धि करता है। शरीर में रक्त की कमी के कारण शरीर पीला दिखता है। रक्त की कमी के कारण शरीर में सूजन, चक्कर आना, याददाश्त की कमी, बालो का गिरना और घबराहट होती है। खून की कमी से मासिक धर्म पर भी असर होता है। मासिक बहुत कम या बहुत अधिक आता है। ऐसे में लौह भस्म का सेवन शरीर में रक्त की कमी को पूरा करता है। लौह भस्म एक उत्तम रसायन है जो पूरे स्वास्थ्य को बेहतर करता है।
एनीमिया को करे दूर
लौह भस्म को लेने से खून बनता है। यह पाण्डुरोगनाशक है। लौह की कमी भारत में एनीमिया का सबसे आम कारण है। लौह की कमी या एनीमिया का निकटतम सहसंबंध आयुर्वेद में पांडु रोग के साथ किया जा सकता है । पाण्डु रोग में शरीर का रंग पीला हो जाता है और खून की कमी स्पष्ट पता लगती है। पांडु रोग में रक्त ऊतक की मात्रात्मक और गुणात्मक कमी के कारण या तो हीमोग्लोबिन और / या लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) की कमी होती है। पांडुता (पीलापन) को मुख्य संकेत के रूप में देखते हुए , रोग को पांडु रोग कहा जाता है।
चूंकि एनीमिया समाज में एक बहुत आम प्रचलित बीमारी है और मौखिक एलोपैथिक लौह की तैयारी के दुष्प्रभाव बहुत आम हैं, इसलिए एक बेहतर विकल्प प्राप्त करने के लिए, लौह भस्म को लिया जा सकता है।
पूरे शरीर की सूजन में लाभप्रद
सर्वाङ्ग शोथ में पूरे शरीर में पानी भर जाता है और सूजन दिखती है। आरबीसी की कम संख्या और शरीर में पानी से सूजन हो जाती है। ऐसे में लौह भस्म बहुत शीघ्र लाभ करती है। लौह भस्म से शरीर में रक्ताणुओं की वृद्धि होती है जिससे शरीर में उत्पन्न जलीय भाग शुष्क होने लगता हैऔर शोथ कम होता है।
रसायन
लौह भस्म रसायन और बाजीकरण है। इसके सेवन से शरीर को हृष्ट-पुष्ट होता है। यह रक्त को बढ़ाने और शुद्ध करने के लिए सर्व प्रसिद्ध औषध है।
रोगनाशक, वाजीकारक तथा शक्तिवर्धक
लौह कई रोगग्रस्त स्थितियों के इलाज के लिए और साथ ही शारीरिक अस्तित्व के लिए शरीर प्रणाली का एक बहुत ही अनिवार्य तत्व है। इसकी कमी से शरीर के महत्वपूर्ण काम ठीक से नहीं हो पाते। लोहे की भस्म के सेवन से लोहे की कमी दूर होती ही और शरीर को ताकत मिलती है।
लौह भस्म के संकेत
- खून की कमी, कमजोरी, थकावट
- रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर
- रक्तार्श bleeding piles
- अग्निमांद्य, अतिसार, अम्लपित्त
- तिल्ली बढ़ जाना
- प्लीहा रोग
- यकृत विकार
- पीलिया
- कृमि
- त्वचा विकार
- पूरे शरीर में सूजन
- शरीर का फूला हुआ दिखना
- मेदोदोष
- अस्थमा
लौह भस्म के नुकसान
- लौह भस्म से मुंह में मेटलिक टेस्ट आ सकता है। इससे मुंह का स्वाद बिगड़ सकता है।
- लौह भस्म से कब्ज़ हो सकती है।
- इससे गैस बनना, जी मिचलाना और अन्य पाचन की दिक्कतें हो सकती है।
लौह भस्म के टॉक्सिक असर
लौह भस्म के एक्यूट विषाक्तता अध्ययन अल्बिनो चूहों में किये गए। मूल्यांकन के लिए जैव रासायनिक मानकों जैसे एलएफटी और केएफटी और हेमेटोलॉजिकल पैरामीटर में परिवर्तन शामिल हैं। जिगर, गुर्दे, प्लीहा, टेस्टिस इत्यादि सहित विभिन्न अंगों के हिस्टोपैथोलॉजिकल अध्ययन भी किसी भी तरह के रोगजनक परिवर्तनों का निरीक्षण करने के लिए आयोजित किए गए।
परिणाम:
तीव्र विषाक्तता अध्ययन में, पशु समूह ने विषाक्तता के किसी भी संकेत को प्रकट नहीं किया था और चिकित्सीय खुराक 100 गुना तक कोई मृत्यु दर नहीं देखी गई।
निष्कर्ष
लोहा भस्म चिकित्सकीय खुराक में सुरक्षित है। हालांकि, उच्चतम खुराक स्तर पर कुछ जैव रासायनिक और हेमेटोलॉजिकल पैरामीटर में हिस्टोपैथोलॉजिकल बदलाव के साथ स्पष्ट हैं।
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Lauha Bhasma
- 125 mg – 250 mg, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
- इसे शहद या घी के साथ लें।
- दवा का अनुपान रोग पर निर्भर है।
- इसे भोजन करने के बाद लें।
- या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
अपथ्य
लौह के सेवनकाल में सफ़ेद कोहंड़ा, तिल का तेल, उड़द, राई, शराब, खटाई, मछली, बैंगन, करेला नहीं खाना चाहिए, ऐसा आयुर्वेद में लिखा है।
पथ्य (क्या खाना चाहिए)
अनार, सेब, अंगूर, घी, शक्कर (चीनी), हलुवा, दूध, रबड़ी, मलाई, मक्खन, पौष्टिक पदार्थ और विटामिन सी युक्त भोजन।
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