मण्डूर भस्म खून की कमी के इलाज के लिए

मंडल / मंडुर भस्म के नाम से जाना जाने वाला यह हर्बल खनिज फार्म कैल्साइन युक्त लोहा से बना है। जब लोहा वर्षों से पृथ्वी की सतह के नीचे दबा रहता है, तो इसमें जंग लगाना शुरू होता है जिसे रासायनिक रूप से फेरिक ऑक्साइड के नाम से जाना जाता है।

खून की कमी होना एक आम समस्या है। इसे मेडिकल भाषा में एनीमिया कहते हैं। एनीमिया होने पर आपके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं मिलता है। जिससे आपको थका हुआ या कमजोर लगता है। आपको श्वास कमी, चक्कर आना, सिरदर्द, या अनियमित दिल की धड़कन की भी हो सकती है।

एनीमिया के लक्षण इसकी गंभीरता, अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्याओं पर निर्भर करते हैं। यदि आपका एनीमिया हल्का है या लंबे समय में विकसित हुआ है, तो आपको कोई लक्षण नहीं पता लगता।

अनीमिया के अधिक विकसित होने पर आपको जल्दी थक जाना, तेज दिल की धड़कन, ध्यान नहीं लगना, पीली चमड़ी, पैर में दर्द, नींद की समस्या आदि में खून की कमी के लक्षण हो सकते है।

कुछ लोग जो आयरन की कमी से ग्रस्त होते हैं वे अजीब चीजें जैसे कागज, बर्फ, या मिटटी आदि खाने लगते हैं। कुछ में नाखूनों के ऊपर वक्रता, जिसे कोलोनीचियास कहा जाता है, भी देखि जाती है। मुँह कोनों पर दरारें भी अनीमिया का लक्षण हो सकता है। कुछ लोगों में एनीमिया का उच्च जोखिम होता है, जैसे मासिक धर्म की में ज्यादा खून जाना, गर्भावस्था जो लोग अक्सर रक्त दान करते हैं, या जो कुछ दवाएं या उपचार लेते हैं।

आयुर्वेद में खून की कमी को दूर करने वाली कई दवाएं है और उन्ही में से एक है मंडूर भस्म। यह लौह भस्म की तुलना में अधिक सौम्य है और आसानी से अवशोषित होती है। मंडुर भस्म का मुख्य संकेत विभिन्न प्रकार के एनीमिया और पीलिया है। इसमें हेपेट्रोप्रोटेक्टिव गतिविधि होने से लिवर रोगों में भी इसे इस्तमाल करते हैं।

Mandur kya hai?

मंडूर भस्म बनाने में पुराने जंग लगे लोहे का इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार जो लोहा कई वर्षों तक भूमि के अन्दर दबा रहता है तो वह मंडूर बन जाता है।

आयुर्वेद में पुराने मण्डूर को लाभप्रद माना गया है। सौ वर्ष पुराना मण्डूर उत्तम, अस्सी वर्ष पुराना मध्यम और साठ वर्ष पुराना अधम गिना जाता है। पुराने समय में मंडूर को लोहे की खदानॉन से प्राप्त किया जाता था।

मंडूर फेरिक ऑक्साइड होता है और देखने में जंग लगे लोहे के चूरे जैसा लगता है। भस्मिकरण ((कैल्सीनेशन) प्रक्रिया के दौरान , मंडूर को विशेष रासायनिक यौगिकों में परिवर्तित किया जाता है जिनके लिए वांछित चिकित्सकीय गतिविधि होती है। यह रक्ताल्पता, पीलिया, खराब पाचन, सूजन, त्वचा रोग आदि की चिकित्सा में पुराने समय से ही लाभदायक मानी गई है।

आयुर्वेदिक के नुसार मंडूर भस्म में निम्न गुण है:

  • वीर्य: शीत
  • गुण: शीत
  • विपाक: कटु
  • रस: कषाय
  • दोष कर्म: पित्त और कफ शामक
  • अंगों पर प्रभाव: रक्त, स्नायु, लाल अस्थि मज्जा, यकृत, प्लीहा, ह्रदय, अग्न्याशय और फेफड़े

बायोमेडिकल एक्शन

मण्डूर भस्म में निम्नलिखित औषधीय गुण हैं:

  • आरबीसी बनाना
  • आर्तवजनक
  • पाचन उत्तेजक
  • लीवर रक्षक
  • हीमोग्लोबिन बढ़ाना

मण्डूर भस्म के संकेत

  • उदर शूल, मन्दाग्नि, संग्रहणी, खून की कमी
  • कमाला Kamala (Jaundice)
  • पीरियड्स नहीं आना
  • पीलिया jaundice
  • प्लीहा का बढ़ना Enlargement of spleen
  • प्लीहा वृद्धि (Splenomegaly)
  • यकृत वृद्धि Yakritvriddhi (Enlargement of liver (Hepatomegaly)),
  • रक्त क्षय Raktakshaya (Blood loss)
  • रक्ताल्पता पांडु Pandu (Anaemia)
  • शोथ Shotha (Inflammation)

मण्डूर भस्म के फायदे

मण्डूर भस्म को एक आयरन सप्लीमेंट के तौर पर दिया जाता है। इसे लेने से शरीर में खून की कमी दूर होती है। यह हेमेटोजेनिक और रक्तकणरंजक है। खून की कमी से होने वाली समस्याएं इसके सेवन से ठीक होने लगती है। मण्डूर भस्म लिवर को बचाती है और भूख और पाचन ठीक से हो, में भी माद करती है। इसे लेने का मुख्य लाभ शरीर में लाल रक्त कोशिकायों का बढना है।

खून की कमी अके साथ यदि हृदय के लक्षण भी है, तो अर्जुन चूर्ण के साथ मण्डूर भस्म लेनी चाहिए।

खून की कमी करे दूर

मण्डूर भस्म खून की कमी और इसके कारण हुए दोषों को दूर करती है। इसके सेवन से शरीर को बल मिलता है। इसकी शरीर में जैव उपलब्धता, अन्य आयरन सप्लीमेंट से बेहतर है।

मण्डूर भस्म लौह भस्म की अपेक्षा ज्यादा सौम्य, सुरक्षित और सहनीय है। यह शरीर पर जल्दी असर करती है, क्योंकि यह लौह भस्म से सूक्ष्म होती है। अतएव, बच्चों, गर्भवती स्त्रियों एवं कोमल प्रकृति वालों के लिए लौह भस्म की अपेक्षा मण्डूर भस्म का प्रयोग करना अधिक बेहतर है।

लाये शरीर में ठंडक

मण्डूर भस्म सौम्य, काषाय और स्वभाव में ठंडक देने वाली औषधि है। सौम्य होने के कारण इसे गर्भावस्था, बच्चों और कोमल प्रकृति के लोगों द्वारा प्रयोग किया जा सकता है। शीतल होने से यह पित्त के विकारों में भी लाभप्रद है।

लिवर और तिल्ली की करे रक्षा

मण्डूर भस्म यकृत पर विशेष प्रभाव डालती है। यह यकृत-प्लीहा वृद्धि को दूर करती है। यकृत की खराबी से होनेवाले पाण्डु रोग, मन्दाग्नि, कामला, बवासीर, शरीर की सूजन, रक्तविकार आदि रोगों में यह फायदेमंद है। शरीर में किसी भी कारण होने वाली सूजन की यह बहुत अच्छी दवा है। यदि पूरे शरीर में सूजन है तो मण्डूर भस्म को पुनर्नवा चूर्ण या पुनर्नवारिष्ट, के साथ लेना चाहिए।

बढाए भूख

मण्डूर भस्म पेट रोगों को भी दूर करती है। इसके सेवन से भूख लगती है, कमजोरी जाती और पूरे शरीर का पीलापन, सूजन दूर होते है। यह पाचन की कमजोरी, कामला, बवासीर, शरीर की सूजन, रक्त विकार, आदि रोगों में तुरंत ही लाभ करती है।

मण्डूर भस्म की डोज़

मण्डूर भस्म को निम्न डोज़ में दिन में दो बार, सुबह और शाम, ले सकते है:

  • वयस्क: 125 से 375 मिलीग्राम। इसे रोग के अनुसार, एक से डेढ़ ग्राम तक भी दिया जा सकता है।
  • बच्चे(5 वर्ष की आयु से ऊपर): 25 से 50 मिलीग्राम
  • गर्भावस्था: 25 मिलीग्राम
  • वृद्धावस्था: 50 से 125 मिलीग्राम
  • मण्डूर भस्म को खाली पेट नहीं लें। इसे खाना खाने के बाद दिन में दो बार ले सकते हैं।

अनुपान

शहद का औषधीय महत्व है। यह एक प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद में शहद को योगवाही (पोटेंशिएटिंग) कहा है।

मंडुर भस्म को शहद के साथ लेने से हेमोग्लोबिन / सीरम आयरन / टीआईबीसी के स्तर में बेहतर सुधार देखा जाता है तथा भूख, सुस्ती और पीलापन जैसे लक्षणों से बेहतर राहत मिलती है।

मण्डूर भस्म के नुकसान side effects

  • मण्डूर भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
  • अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
  • सही प्रकार से बनी भस्म का ही सेवन करे।
  • मण्डूर भस्म की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।

मण्डूर भस्म के अवयव

मंडूर (पुराना जंग लगा लौह या फेरिक ऑक्साइड या रेड आयरन ऑक्साइड) को शोधन और मारण द्वारा मंडूर भस्म में बदला जाता है। शोधन में गोमूत्र का और मारण में त्रिफला के काढ़े का प्रयोग होता है। वजनदार और चिकना मण्डूर अग्नि में तपा-तपा कर लाल होने पर 21 बार गो-मूत्र में डालने से मण्डूर शुद्ध हो जाता है।

शोधित मण्डूर को पीस कर पाउडर बना लेते हैं।

अब एक भाग मण्डूर और चार भाग त्रिफला काढ़े को मिला कर आग पर पकाया जाता है।

जब जलीय हिस्सा वाष्पित हो जाता है और पेस्ट बनता है तो इसे गौ मूत्र और एलो वेरा रस में मिला कर घोंटा जाता है और सुखाया जाता है।

सूखने पर इसे उच्च तापमान पर गरम किया जाता है तथा यह प्रक्रिया कई बार दोहरायी जाती है।

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