स्वर्ण भस्म के लाभ, प्रयोग और साइड इफेक्ट्स

स्वर्ण भस्म अतिसार, ग्रहणी, खून की कमी में बहुत लाभदायक है। आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म को शरीर के सभी रोगों को नष्ट करने वाली औषधि है। स्वर्ण भस्म शक्तिशाली एंटीटॉक्सिन, इम्यूनोमोडायलेटरी, नॉट्रोपिक, एंटी-रूमेटिक, एंटीमिक्राबियल और एंटीवायरल है।

स्वर्ण भस्म को सोने से तैयार किया जाता है। इसे गोल्ड भस्म, स्वर्ण भस्म और सुवर्णा भस्म भी कहा जाता है। यह बीमारियों की एक विस्तृत श्रृंखला के उपचार में उपयोग की जाती है। यह एक अच्छी तंत्रिका टॉनिक है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करती है।

स्वर्ण भस्म (सोना भस्म) व्यापक रूप से चिकित्सीय एजेंटों के रूप में उपयोग की जाती है। यह शीतल, सुखदायक, त्रिदोषनाशक, स्निग्ध, मेद्य, विषविकारहर, रुचिकारक, अग्निदीपक, वात पीड़ा शामक और उत्तम वृष्य है। यह तपेदिक, उन्माद शिजोफ्रेनिया, मस्तिष्क की कमजोरी, व शारीरिक बल की कमी में विशेष लाभप्रद है। यह शक्ति और सहनशक्ति को बढ़ाती है और मानसिक और शारीरिक प्रदर्शन में सुधार करती है। यह अन्य दवाओं या जड़ी बूटियों के साथ सभी बीमारियों में उपयोग किया जा सकती है।

आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म को शरीर के सभी रोगों को नष्ट करने वाली औषधि बताया गया है। स्वर्ण भस्म शक्तिशाली एंटीटॉक्सिन, इम्यूनोमोडायलेटरी, नॉट्रोपिक, एंटी-रूमेटिक, एंटीमिक्राबियल और एंटीवायरल है। यह एक तंत्रिका टॉनिक भी है। स्वर्ण भस्म को आमतौर पर शहद, घी या दूध के साथ मौखिक रूप से मिश्रित किया जाता है।

मात्रा Dosage

स्वर्ण भस्म को बहुत ही कम मात्रा में चिकित्सक की देख-रेख में लिया जाना चाहिए। सेवन की मात्रा 1 से 30 मिली ग्राम, दिन में दो बार है।

उम्र के अनुसार स्वर्ण भस्म का खुराक:

  • शिशु (आयु: 12 महीने तक): 1 से 5 मिलीग्राम
  • बच्चा (आयु: 1 – 3 साल): 5 से 7.5 मिलीग्राम
  • प्रीस्कूलर (3 – 5 साल): 7.5 से 10 मिलीग्राम
  • ग्रेड-स्कूली (5 – 12 साल): 10 से 15 मिलीग्राम
  • किशोर (13 -19 वर्ष): 15 से 20 मिलीग्राम
  • वयस्क: 20 से 30 मिलीग्राम

सेवन विधि

इसे दूध, शहद, घी, आंवले के चूर्ण, वच के चूर्ण या रोग के अनुसार बताये अनुपान के साथ लेना चाहिए।

स्वर्ण भस्म अकेले इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन उचित अनुपान के साथ इसका उपयोग करना चाहिए।

स्वर्ण भस्म के संकेत Therapeutic Uses

स्वर्ण गोल्ड भस्म का पारंपरिक भारतीय आयुर्वेदिक दवा में चिकित्सकीय एजेंट के रूप में कई नैदानिक ​​विकारों के लिए उपयोग किया जाता है। यह ब्रोन्कियल अस्थमा, रूमेटोइड गठिया, मधुमेह मेलिटस, और तंत्रिका तंत्र रोग में विशेष रूप से फायदेमंद है। स्वर्ण भस्म में 90% से अधिक सोने के कण होते हैं।

आधुनिक चिकित्सा भी सोने के नैनोकणों को दवा वितरण में महत्वपूर्ण अनुप्रयोग मिलते हैं क्योंकि वे सक्रिय दवाओं और लक्ष्यीकरण को समाहित करने में सक्षम होते हैं। कोलाइडियल गोल्ड नैनोकणों कण आधारित ट्यूमर-लक्षित दवा इसी तकनीक का प्रतिनिधित्व करते हैं। सोने के नैनोकणों पर पॉलीथीन ग्लाइकोल (पीईजी) का मोनोलेयर सेलुलर आंतरिककरण गुणों को बेहतर बनाने के लिए पाया गया है।

स्वर्ण गोल्ड भस्म यौन दुर्बलता, धातुक्षीणता, नपुंसकता, प्रमेह, स्नायु दुर्बलता, यक्ष्मा/तपेदिक, जीर्ण ज्वर, जीर्ण कास-श्वास, मस्तिष्क दुर्बलता, उन्माद, त्रिदोषज रोग, पित्त रोगमें लाभप्रद है। यह नसों, मस्तिष्क, फेफड़ों, दिमाग, दिल, रक्त वाहिकाओं, आंखों, छोटी आंतों, बड़ी आंतों, अंडाशय, और टेस्टों पर कार्य करती है। इसलिए, इन अंगों की बीमारियों के इलाज के लिए अक्सर इसका उपयोग किया जाता है।

  • अवसाद
  • असाध्य रोग
  • अस्थमा, श्वास, कास
  • अस्थमात्मक ब्रोंकाइटिस
  • अस्थिक्षय, अस्थि शोथ, अस्थि विकृति
  • आंतों के क्षय रोग
  • आवर्ती ऊपरी श्वसन संक्रमण
  • एंजाइना पेक्टोरिस
  • एलर्जी रायनाइटिस
  • ऑस्टियोआर्थराइटिस
  • कम प्रतिरक्षा
  • कम श्रेणी का बुखार
  • कार्डियक कमजोरी
  • कृमि रोग
  • क्रोनिक ब्रोंकाइटिस
  • खांसी
  • खुजली
  • गर्भाशय की कमजोरी
  • चेहरे की नसो मे दर्द
  • जीवन शक्ति का नुकसान
  • जीवाणु और वायरल संक्रमण
  • टॉ़यफायड बुखार
  • तंत्रिका कमजोरी
  • तंत्रिका तंत्र के रोग
  • द्विध्रुवी विकार
  • नपुंसकता
  • पक्षाघात जैसे तंत्रिका संबंधी रोग
  • पुराना बुखार
  • प्रेरक-बाध्यकारी विकार (ओसीडी)
  • बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने के लिए
  • बांझपन
  • बांझपन
  • बाहरी और आंतरिक कारकों के कारण विषाक्तता या जहर
  • मनोवैज्ञानिक विकार, उन्माद, शिजोफ्रेनिया
  • मिर्गी
  • यक्ष्मा / तपेदिक
  • यौन दुर्बलता, वीर्य की कमी, इरेक्टाइल डिसफंक्शन
  • रक्त विषाक्तता (सेप्सिस या सेप्टिसिमीया)
  • रुमेटी गठिया
  • विष का प्रभाव
  • शरीर में कमजोरी कम करने के लिए
  • संधिशोथ
  • सभी प्रकार के कैंसर
  • सभी प्रकार के क्षय रोग (टीबी)
  • सामान्यीकृत चिंता विकार
  • सूजाक
  • सोरायसिस

आयुर्वेदिक गुण और प्रभाव

  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर
  • रस (taste on tongue): मधुर, तिक्त, कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध

कर्म:

  • वाजीकारक aphrodisiac
  • वीर्यवर्धक improves semen
  • हृदय cardiac stimulant
  • रसायन immunomodulator
  • कान्तिकारक complexion improving
  • आयुषकर longevity
  • मेद्य intellect promoting
  • विष नाशना antidote

स्वर्ण भस्म के फायदे Health Benefits of Swarna Bhasma in Hindi

स्वर्ण की भस्म में सोना बहुत ही सूक्ष्म रूप में (नैनो मीटर 10-9) विभक्त होता है। यह शरीर की कोशिकायों में सरलता से प्रवेश कर जाती हैं और इस प्रकार यह शरीर का हिस्सा बन जाती हैं। यह शारीरिक और मानसिक शक्ति में सुधार करने वाली औषध है। यह हृदय और मस्तिष्क को विशेष रूप से बल देने वाली है। आयुर्वेद में हृदय रोगों और मस्तिष्क की निर्बलता में स्वर्ण भस्म को सर्वोत्तम माना गया है।

स्वर्ण भस्म अतिसार, ग्रहणी, खून की कमी में बहुत लाभदायक है। बुखार और संक्रामक ज्वरों के बाद होने वाली विकृति को इसके सेवन से नष्ट किया जा सकता है। यदि शरीर में किसी भी प्रकार का विष चला गया हो तो स्वर्ण भस्म को को मधु अथवा आंवले के साथ दिया जाना चाहिए।

अंगों को दे ताकत

स्वर्ण भस्म को बल (शारीरिक, मानसिक, यौन) बढ़ाने के लिए एक टॉनिक की तरह दिया जाता रहा है। यह रसायन, बल्य, ओजवर्धक, और जीर्ण व्याधि को दूर करने में उपयोगी है। स्वर्ण भस्म का सेवन पुराने रोगों को दूर करता है। यह जीर्ण ज्वर, खांसी, दमा, मूत्र विकार, अनिद्रा, कमजोर पाचन, मांसपेशियों की कमजोरी, तपेदिक, प्रमेह, रक्ताल्पता, सूजन, अपस्मार, त्वचा रोग, सामान्य दुर्बलता, अस्थमा समेत अनेक रोगों में उपयोगी है।

स्वर्ण भस्म हृदय और हृदय की मांसपेशियों को ताकत प्रदान करती है। यह दिल के विभिन्न हिस्सों में रक्त परिसंचरण को बढ़ाती है और कोरोनरी धमनियों को साफ करती है। यह दिल की मांसपेशियों में रक्त के इष्टतम प्रवाह को बनाए रखकर दिल को मायोकार्डियल आइस्क्रीमिया से रोकती है। श्रृंग भस्म के साथ स्वर्ण भस्म का सेवन धमनियों के एथेरोस्क्लेरोसिस को कम कर देता है, रक्त वाहिकाओं को आराम देता है और बाधाओं को हटा देता है।

बुढ़ापा रखे दूर

स्वर्ण भस्म आयुष्य है और बुढ़ापे को दूर करती है। यह भय, शोक, चिंता, मानसिक क्षोभ के कारण हुई वातिक दुर्बलता को दूर करती है। बुढ़ापे के प्रभाव को दूर करने के लिए स्वर्ण भस्म को मकरध्वज के साथ दिया जाता है।

स्वर्ण भस्म शरीर से खून की कमी को दूर करता है, पित्त की अधिकता को कम करता है, हृदय और मस्तिष्क को बल देता है और पुराने रोगों को नष्ट करता है। स्वर्ण भस्म का वृद्धावस्था में प्रयोग शरीर के सभी अंगों को ताकत देता है।

यह झुर्रियों, त्वचा के ढीलेपन, सुस्ती, दुर्बलता, थकान, आदि में फायेमंद है। इसका सेवन जोश, ऊर्जा और शक्ति को बनाए रखने में अत्यधिक प्रभावी है।

दिल को दे ताकत

हृदय की दुर्बलता में स्वर्ण भस्म का सेवन आंवले के रस अथवा आंवले और अर्जुन की छाल के काढ़े अथवा मक्खन दूध के साथ किया जाता है।

यौन शक्ति को बढाए

स्वर्ण भस्म एक टॉनिक है जिसका सेवन यौन शक्ति को बढ़ाता है। यह शरीर में हार्मोनल संतुलन करती है।

स्वभाव से स्वर्ण भस्म शीतल है और मधुर विपाक है। इसके सेवन से शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

खून की कमी करे दूर

यह खून की कमी को दूर करती है और शरीर में खून की कमी से होने वाले प्रभावों को नष्ट करती है।

तपेदिक में करे फायदा

स्वर्ण भस्म शरीर की सहज शरीर प्रतिक्रियाओं में सुधार लाती है। यह शरीर से दूषित पदार्थों को दूर करती है। पुराने रोगों में इसका सेवन विशेष लाभप्रद है। यह क्षय रोग के इलाज के लिए उत्कृष्ट है। स्वर्ण भस्म तपेदिक के शुरुआती चरणों में फायदेमंद है। लेकिन जब तपेदिक में उच्च ग्रेड बुखार है, तो स्वर्ण भस्म का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

मानसिक विकारों में करे फायदा

स्वर्ण भस्म मानसिक विकारों के लिए भी फायदेमंद आयुर्वेदिक दवा है।

स्वर्ण भस्म के नुकसान

आयुर्वेदिक तरीके से तैयार की गई उत्तम स्वर्ण भस्म को लेने का कोई भी ज्ञात साइड इफ़ेक्ट नहीं है।

सुरक्षा प्रोफाइल

जब स्वर्ण भस्म को आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में अनुशंसित खुराक में लिया जाता है तो यह अधिकांश व्यक्तियों में लेने के लिए सेफ है।

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