आयुर्वेद प्राचीन चिकित्सा पद्यति है तथा भारत में यह कुछ 5000 या अधिक साल पहले से प्रयोग की जा रही है। आयुर्वेद में त्रिदोष का सिद्धांत बहुत ही महत्वपूर्ण है। त्रिदोष तीन मौलिक ऊर्जा को परिभाषित करता है जो भौतिक और भावनात्मक स्तर पर हमारे शरीर के कार्य को नियंत्रित करते हैं।
इन तीन दोषों को वात, पित्त और कफ दोष से जाना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति में इन तीन ऊर्जाओं का एक अनूठा संतुलन होता है। कुछ लोग एक में प्रमुख होंगे जबकि अन्य दो या अधिक का मिश्रण हैं। वात, पित्त और कफ दोष में किसी भी तरह का असंतुलन रोगों का कारण बनता है।
वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात या वायु तंत्रिका-बल से संबंधित है। यह मन और शरीर में सभी गति के लिए जिम्मेदार है। वायु पित्त और कपा के संतुलन को भी नियंत्रित करता है। वायु कार्यों में नियंत्रण और समन्वय शामिल हैं शरीर की गति और इंद्रियों और संवेदनाओं को संचारित करना, श्वसन को नियंत्रित करना, मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं, भाषण, और आंत की गति आदि का नियंत्रण वात ही करता है।
पित्त और कफ को चलाने वाला भी वात ही है। वात पित्त दोष के साथ मिलकर है तो जलन, गर्मी वाले गुण का बन जाता तथा कफ के साथ इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं। वात स्वास्थ को बनाए रखने के लिए मुख्य प्रेरक है। वात दोष में असंतुलन विभिन्न रोगों के लिए जिम्मेदार है।
वायु कोशिकाओं को विभिन्न संरचनाओं में है, रक्त वाहिकाओं, लसीका प्रणाली और नसों में भी है। यदि वात संतुलित रहता है तो शरीर, शरीर की सभी पाँच इंद्रियाँ और अंग स्थिर रहते हैं, अन्यथा यह कई जटिलताओं का कारण बनता है। आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या ही 80 के करीब है।
हल्के, रूखे सूखे, भोजन के सेवन से शरीर में वात भ्रष्ट हो जाता है। लंबे समय तक अत्यधिक हल्के पदार्थ खाने से, रफेज कम लेने से, अत्यधिक कोल्ड ड्रिंक्स पीने से, अत्यधिक काम करने से, तनाव, चिंता, दुःख, घबराहट, भय, अत्यधिक सेक्स के कारण, रात को देर से सोना, और लंबे समय तक स्नान करने आदि से भी वात असंतुलित हो जाता है। उम्र बढ़ने के दौरान भी वात अधिक परेशान करता है। वायु दोष होने पर आँतों में गैस, गठिया, जोड़ों में दर्द, पीठ में दर्द, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्द आदि होने लगते हैं। अपच और कब्ज भी होता है।
वात के प्रकार
वात को शरीर में स्थिति और कार्यों के अनुसार 5 प्रकार का माना गया है।
- प्राण
- उदान
- समान
- व्यान
- अपान
वात प्रकृति वाले लोग
वात को हवा बहुत पसंद है तथा यह हल्का, ठंडा, सूखा और मोबाइल है। वात प्रकृति वाले लोग इन गुणों का अधिक अनुभव करते हैं। उनके शरीर हल्के होते हैं, उनकी हड्डियां पतली होती हैं, और उनकी त्वचा और बाल सूखे होते हैं। वे अक्सर तेज चलते हैं और जल्दी बोलते हैं। संतुलन से बाहर होने पर, उनका वजन कम हो सकता है, कब्ज़ हो सकती है और उनकी प्रतिरक्षा और तंत्रिका तंत्र में कमजोरी आ सकती है।
वात प्रकृति वाले लोग उत्साही, रचनात्मक, लचीले और ऊर्जावान होते हैं। वात के, संतुलन से बाहर होने पर वे आसानी से भ्रमित और अभिभूत हो सकते हैं, ध्यान केंद्रित करने और निर्णय लेने में कठिनाई होती है और सोने में परेशानी होती है। यह तब और अधिक स्पष्ट हो जाता है जब वे तनाव में होते हैं।
वात संतुलन
वायु में रूखापन, शीतलता, लघु, सूक्ष्म, चंचलता, चिपचिपाहट से रहित और खुरदुरापन आदि गुण हैं। वात में संतुलन लाने के लिए, आयुर्वेद में शरीर में गर्मी, भारीपन (पोषण), नमी और स्थिरता के गुणों पर जोर देते हैं। आहार में, पके हुए अनाज जैसे चावल और पकी हुई सब्जियों के साथ-साथ मसालों के साथ गर्म दूध का सेवन किया जाना चाहिए। अदरक जैसी तीखी जड़ी-बूटियाँ जो आंतरिक गर्मी बढ़ाती हैं और अश्वगंधा जैसी पौष्टिक जड़ी बूटियाँ वात में संतुलन लाती हैं।
आयुर्वेदिक कार्यक्रमों में केवल जड़ी-बूटियाँ और आहार ही नहीं, बल्कि रंग और सुगंध चिकित्सा, विषहरण, योग और ध्यान भी शामिल हैं।
आहार diet के साथ वात दोष को संतुलित करना
वात गुणों में ठंडा, शुष्क, हल्का और मोबाइल है। तो इन गुणों को संतुलित करने के लिए इसके विपरीत गुणों वाले भोजन अर्थात गर्म, मीठा, पौष्टिक भोजन करना चाहिए। शांत वातावरण में नियमित भोजन करना चाहिए।
वात विकार के कारण होने वाले रोग
- अंगों का ठंडा और सुन्न होना
- अंगों में कंपकपी
- अंगों में कमजोरी महसूस होना
- अंगों में रूखापन
- अनिद्रा
- अवसाद, भय और चिंता
- असंतुलित तंत्रिका तंत्र
- कटिस्नायुशूल
- कब्ज
- गैस
- जकड़न
- दमा
- दर्दनाक माहवारी
- नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना
- निचली कमर का दर्द
- मुंह का स्वाद कडवा होना
- संधिशोथ
- सरदर्द
- सुई के चुभने जैसा दर्द
- स्त्री रोग
- हड्डियों का खिसकना
- हड्डियों का टूटना
- हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन
आहार की सिफारिशें
वात संतुलित करने के लिए अपने दैनिक आहार में तरल तथा तैलीय खाद्य पदार्थों को शामिल करें। इससे शरीर का सूखापन दूर होता है। वायु के हल्के गुण को संतुलित करने के लिए खाने में कुछ “भारी” खाद्य पदार्थ लें जो पोषण देते हैं।
क्या कम खाएं
ठंडा, हल्का, सूखा
कौन से स्वाद का भोजन लें
मीठा, खट्टा और नमकीन
कौन से स्वाद का भोजन कम लें
तीखा, कसैला, कड़वा
विशिष्ट आहार युक्तियाँ:
- वात को संतुलित करने में मदद करने वाले तीन आयुर्वेदिक स्वाद हैं, मीठा खट्टा और नमकीन, इसलिए अपने दैनिक आहार में इन्हें शामिल करें।
- यदि आपको वात को संतुलित करने की आवश्यकता है, तो वसा लेना चाहिए । थोड़ा घी (मक्खन) तेल आदि भोजन में शामिल करें।
- गर्म ताजा, पकाया हुआ भोजन खाएं।
- दूध, खट्टे फल, सूखे फल या सूरजमुखी या कद्दू के बीज खाएं ।
- कड़वा, तीखा और कसैले स्वाद वाला भोजन कम खाएं।
- रात में दस बादाम भिगोएँ और सुबह छील के खाएं।
- गाजर, शतावरी, कोमल पत्तेदार साग, बीट्स, शकरकंद और ग्रीष्मकालीन कद्दू खाएं।
- बासमती चावल वात को संतुलित करने के लिए आदर्श है। गेहूं भी अच्छा है ।
- अधिकांश मसाले पाचन को बढ़ाते हैं, इसलिए भोजन में इन्हें डालने से पाचन ठीक से होता है। हल्दी, जीरा, धनिया, अदरक,काली मिर्च और आदि का प्रयोग करें।
- दिन भर में बहुत सारा गर्म पानी या हर्बल चाय पियें।
- फलीदार सब्जी नहीं खाएं।
- पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, कच्चे केले आदि नहीं खाएं।
- खाद्य पदार्थ जिससे गैस बनती है न खाएं।
- कच्चे भोज्य पदार्थों से बचें या कम करें।