बंग भस्म Vang or Bang Bhasma आयुर्वेद की सुप्रसिद्ध दवा है जिसे आदमियों के प्रमेह रोग ( बहुमूत्रता, वीर्यस्त्राव, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, नपुंसकता) और स्त्रियों के प्रदर रोग (अत्यार्तव, कष्टार्तव) में दिया जाता है। धातु में वृद्धि करने के गुण से इसे धातुक्षीणता, क्षय, खून की कमी, पाण्डु, आदि रोगों में भी देते हैं। कफ को कम करने का गुण इसे कास, श्वास, त्वचा के दोष आदि में देते हैं। तासीर में गर्म होने के कारण बंग भस्म दीपक, पाचक, रूचिकर, है। यह भस्म उपदंश और सूजाक से दूषित शूक्र को शुद्ध कर सन्तानोत्पादन के योग्य बनाती है।
वंग भस्म क्या है?
भस्म अद्वितीय आयुर्वेदिक धातु की तैयारी हैं जिनका उपयोग प्राचीन काल से औषधीय उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह वे आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन मिश्रण हैं जिनमें पौधे, खनिजों और धातुएं शामिल हैं। यह धातु की हर्बल तैयारी हैं जो लंबे समय तक स्थिर है और कम खुराकमें असर दिखाती हैं।
वंग भस्म को बंग अथवा वंग से तैयार किया जाता है। वंग, टिन का नाम है। टिन से वंग भस्म तक बनने में शोधन, मर्दन और मारण करते है। खनिजों की भस्म क्रिया से ये अपने ऑक्साइड रूप में बदल जाती है। जड़ी बूटियों के इस्तेमाल से यह शरीर में आसानी से अवशोषित हो सकने योग्य हो जाती है।
वंग भस्म का शरीर पर असर
- दर्द निवारक
- एडाप्टोजेनिक
- एंटीऑक्सीडेंट
- ओवुलेशन स्टीमुलेंट
- हेमटोगेनिक
आयुर्वेदिक गुण
- वीर्य: उष्ण
- गुण: लघु (लाइट), उष्ण (गर्म), रुक्ष (सूखा), सार या चल (मोबाइल या गतिशीलता)
- विपाक: कटु
- रस: तिक्त (कड़वा)
बंग भस्म के संकेत
बंग भस्म का मुख्य असर पेशाब और प्रजनन अंगों पर देखने मिलता है । पुरुषों में यह वृषण और इन्द्रिय पर काम करती है और महिलाओं में इसका प्रभाव गर्भाशय, अंडाशय,पर दिखाई देता है। शरीर में कफ की अधिकता में भी यह लाभ करती है।
वंग भस्म का प्रयोग प्रजनन-मूत्र संबंधी विकार , मधुमेह , एनीमिया , अस्थमा, गैस्ट्रिक अल्सर और मूत्र रोगों के उपचार में किया जाता है।
- अनीमिया
- अस्थमा
- कास-श्वास, कोल्ड-कफ-खांसी
- किसी रोग के कारण शुक्रस्राव
- गर्भाशय के दोष
- गर्भाशय से अत्यधिक रक्तस्राव
- गोनोरिया, सूजाक, उपदंश
- डिंबक्षरण (ऐनोवुलेशन)
- त्वचा दोष
- धातुक्षीणता
- नपुंसकता
- पीरियड्स में दर्द
- पुरुष प्रजनन अंग के रोग
- पुरुषों का प्रमेह
- पेशाब के साथ शुक्र जाना
- पेशाब सम्बन्धी रोग Urinary Disorders:
- बहुमूत्रता
- बार बार पेशाब आना
- बीसों प्रकार के प्रमेह
- महावारी पूर्व सिंड्रोम
- मासिक की दिक्कतें
- मुंह से दुर्गन्ध का आना
- मूत्र पथ संक्रमणों
- मूत्र विकार
- मोटापा
- रक्त दोष
- रजोनिवृत्ति
- रजोरोध
- ल्यूकोरिया
- वीर्यस्राव
- शीघ्रपतन
- शुक्रमेह
- संतानहीनता
- स्त्रियों की प्रदर समस्या
- स्त्रियों के रोग Female Disorders:
- स्वप्न दोष
बंग भस्म की डोज़
बंग भस्म लेने की मात्रा 125 से 250 मिलीग्राम है।
आप इसे मक्खन, मलाई, मिश्री, शिलाजीत, गिलोय सत्त्व, शहद या रोगानुसार उचित अनुपान के साथ ले सकते हैं।
अनुपान
रोगानुसार वंग भस्म का अनुपान भी भिन्न हो सकता है।
बंग भस्म के फायदे
बंग भस्म शरीर को पुष्ट करती है तथा अंगों को ताकत देती है। इसे आयुर्वेद में हल्का, दस्तावर, और गर्म माना गया है। यह मुख्य रूप से मूत्र – प्रजनन अंगों, रक्त और फेफड़ों सम्बंधित रोगों में लाभप्रद है। यह पुरुषों के लिए प्रमेह, शुक्रमेह, धातुक्षीणता, वीर्यस्राव, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, नपुंसकता, क्षय आदि में लाभप्रद है। यह टेस्टिकल की सूजन को नष्ट करती है। बंग भस्म इन्द्रिय को सख्ती देती है और वीर्य को गाढ़ा करती है।
यह स्त्रियों के लिए गर्भाशय के दोष, अधिक मासिक जाना, मासिक में दर्द, डिम्ब की कमजोरी आदि में लाभप्रद है। बंग भस्म रक्त के दोषों को दूर करती है।
दूर करे नाईट फॉल स्वप्नदोष की समस्या
सोते हुए यदि वीर्य निकल जाता है तो बंग भस्म का सेवन करना चाहिए। स्वप्नदोष में वंग भस्म को इसबगोल की भूसी के साथ लेना चाहिए। अथवा एक रत्ती वंग भस्म को एक रत्ती प्रवाल पिष्टी, और चार रत्ती कबाब चीनी के चूर्ण में शहद मिलाकर लेना चाहिए।
मदद करे अप्राकृतिक मैथुन की आदत में
हस्त मैथुन, अप्राकृतिक मैथुन की आदत में वंग भस्म को प्रवालपिष्टी और स्वर्णमाक्षिक भस्म के साथ लेने पर लाभ होता है।
मदद करे मर्दाना कमजोरी में
वंग भस्म वातवाहिनी तथा मांसपेशी की कमजोरी दूर कर कर्मेन्द्रिय में सख्ती पैदा करती और शुक्र को भी गाढा कर देती है। वीर्यस्तम्भन के लिए, एक रत्ती बंग भस्म को आधा रत्ती कस्तूरी के साथ देना चाहिए। नपुंसकता में एक रत्ती बंग भस्म को अपामार्ग चूर्ण के साथ लेना चाहिए। अनैच्छिक वीर्यस्राव, शुक्र का पतलापन, स्वप्नदोष, शुक्र की कमजोरी, आदि में वंग भस्म का सेवन मलाई के साथ करना चाहिए।
गाढ़ा करे वीर्य
शुक्र धातु के पतलेपन में बंग भस्म को मूसली चूर्ण के एक महीने तक निरंतर सेवन करना चाहिए।
करे वीर्यस्तम्भन जिससे रति क्रिया अधिक देर तक चले
बंग भस्म २ रत्ती, नाग भस्म १ रत्ती, वंशलोचन चूर्ण ४ रत्ती में मिलाकर अथवा कस्तूरी आधी रत्ती, भांग ४ रत्ती में मिलाकर मक्खन -मिश्री अथवा पान के रस या मधु में मिलाकर दें, पश्चात् औंटाया हुआ दुध पिलावें।
प्रमेह रोगों में करे फायदा
प्रमेह में वंग भस्म को निरंतर एक महीने तक शिलाजीत चार रत्ती, गुडूची सत्व चार रत्ती में मिलाकर शहद के साथ चाटना चाहिए। अथवा एक रत्ती वंग भस्म को चार रत्ती हल्दी चूर्ण और एक रत्ती अभ्रक भस्म के साथ लेना चाहिए। अथवा एक रत्ती बंग भस्म को तुलसी के रस या पेस्ट के साथ के साथ लेना चाहिए।
प्रदर में लाभप्रद
स्त्रियों की सफ़ेद पानी की समस्या, डिम्ब की निर्बलता, इनफर्टिलिटी में इसे शृंग भस्म के साथ मिलाकर दिया जाता है।
श्वेत प्रदर में बंग भस्म को लोह भस्म, शुक्ति भस्म के साथ दिया जाता है। सोम रोग में बंग भस्म १ रत्ती को ताम्र भस्म आधी रत्ती के साथ मधु में मिलाकर दें।
पेशाब रोगों में करे लाभ
वंग भस्म सभी मूत्र विकारों में फायदेमंद है।
ठीक करे पाचन
अग्निमांद्य में इसे दो रत्ती पिप्पली चूर्ण और शहद के साथ लेना चाहिए। अजीर्ण में,बंग भस्म १ रत्ती, लवणभास्कर चूर्ण देड माशा में मिलाकर, गर्म जल के साथ लें।
बंग भस्म के नुकसान
- उचित रूप से तैयार भस्म शरीर में गैर-विषैले, आसानी से अवशोषक, अनुकूलनीय और पचाने योग्य है।
- बंग भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
- धातु होने से इसकी अधिकता खतरनाक हो सकती है।
- इसका अधिक सेवन पेट में जलन कर सकता है।
- इसे लेने से मुंह में धातु वाला टेस्ट आ सकता है।
- यह दवा डॉक्टर के निर्देश से एक महीने तक ही लें।
गर्भावस्था
- यह गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए अनुपयुक्त है।
- इससे गर्भ स्राव का खतरा हो सकता है।
अपथ्य
सभी तीक्ष्ण भोज्य पदार्थ, मिर्च मसाले और इमली आदि।