वासावलेह सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, विभिन्न ईटियोलॉजी की खांसी, अधिक कफ, ब्रोन्कियल अस्थमा, रक्तस्राव विकार, बुखार और पुराने जुखाम के कारण खांसी में प्रभावशाली है। इसे मुख्य रूप से श्वसन विकारों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। वासावलेह एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक दवा है जो हर्बल जैम या पेस्ट फॉर्म में उपलब्ध है।
वासावलेह में औषधीय गतिविधियों का विस्तृत स्पेक्ट्रम है। इसमें म्यूकोलिटिक, उत्तेजक, ब्रोंकोडाइलेटर, और hypotensive गतिविधिया हैं।
वासावलेह के फायदे
वासावलेह में वासा मुख्य घटक है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि 18% आबादी एक या अन्य प्रकार के श्वसन पथ के संक्रमण से पीड़ित है । प्रदूषित पर्यावरण के लिए एक्सपोजर, प्रतिरक्षा में कमी, खाद्य आदतों में बदलाव, दूषित भोजन और पेय पदार्थ, सभी एलर्जी एजेंटों के संपर्क में श्वसन पथ संक्रमण का कारण बनता है। एलर्जीय राइनाइटिस उनमें से सबसे आम है। वासावलेह एक सुरक्षित आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन है जिसे अस्थमा, पुरानी सर्दी, राइनाइटिस और इसी तरह के श्वसन पथ की शिकायत, संक्रमण और अन्य बीमारियों जैसे तपेदिक, दर्द पेट, रक्तस्राव विकार और बुखार इत्यादि के लिए बनाया गया है। वासवलेहा अवलेह है जिसे वासा के काढ़े, गुड़, चीनी के साथ तैयार किया जाता है।
वासावलेह में ब्रोंकोडाइलेटर, एंटी-अस्थेमेटिक,एंटी-अल्सरेटिव, एंटी-एलर्जी, एंटी-ट्यूबरक्युलर, हेपेटोप्रोटेक्टीव, जीवाणुरोधी और एंटीमिक्राबियल इत्यादि गुण है जो एल्कालोइड, मायनटोन, सैपोनिन्स, कार्बोहाइड्रेट, पाइपरिन, पाइप्लाटिन, वैसीसिनोलोन और वैसीसिनोल आदि के कारण है।
ब्रोंकोडाइलेटर
यह ब्रोंकाइटिस की समस्या के प्रबंधन में उपयोगी है। इसे लेने से वायुमार्ग के जाम होने में राहत मिलती है।
कफ करे कम
वासावलेह को खाने से कफ कम होते है और जमा हुआ कफ ढीला होकर निकल जाता है। यह उन कफ में उपयोगी है जो बढे हुए पित्त और कफ से होता है।
ब्लीडिंग डिसऑर्डर में उपयोगी
वासावलेह को खाने से इंटरनल ब्लीडिंग की समस्या में लाभ होता है।
वासावलेह के संकेत
वासावलेह में ब्रोंकोडाइलेटरी और एंटीमिक्राबियल गुण होते हैं । इसका उपयोग खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, दर्द के पेट, रक्तस्राव विकार और बुखार के इलाज में किया जाता है।
- अल्सरेटिव कोलाइटिस
- एलर्जी
- कार्डियक दर्द
- कास
- क्रोनिक ब्रोंकाइटिस
- खांसी
- गठिया
- ज्वर
- टीबी
- दमा
- नाक से खून आना
- पार्श्वशूल
- पेट में दर्द
- ब्रोंकाइटिस
- यक्ष्मा
- रक्तपित्त
- श्वास
- सर्दी
- सर्दी, खाँसी,दमा, साँस लेने में कठिनाई
- सीने में दर्द
वासावलेह की डोज़
वासावलेह को दैनिक दो बार 6 से 12 ग्राम (वयस्कों के लिए) अथवा 5 ग्राम (पांच से लेकर बारह वर्ष की आयु के बच्चों) की मात्रा में लेते हैं। इसे दूध, पानी और शहद के साथ लेना चाहिए।
सावधनियाँ
इसमें मधु और मिश्री है इसलिए डायबिटीज में इसे सावधानी से प्रयोग करें।
साइड-इफेक्ट्स
वासावलेह के कुछ घटक उष्णवीर्य हैं, इसलिए अधिकता में सेवन पित्त बढ़ा सकता है जिससे पेट में जलन हो सकती है।
- कब प्रयोग न करें
- डायबिटीज
- प्रेगनेंसी
- अधिक पित्त
- अधिक वात आदि।
वासावलेह के घटक द्रव्य
- वासा 768 ग्राम
- मिश्री 384 ग्राम
- सर्पी Sarpi (Go ghrita) 96 ग्राम
- पिप्पली 96 ग्राम
- शहद 384 ग्राम
बनाने की विधि
वासावलेह बनाने के लिए सर्वप्रथम, वासा के पत्तों को धो-साफ़ कर उनका रस निकाला जाता है। फिर इस रस में मिश्री के पाउडर को डाल मंद आंच पर पकाया जाता है। इसे लगातार चलाया जाता है और पूरी तरह से तरल हो जाने पर कपड़े से छान लिया जाता है। छनने के बाद में इसमें घी और पिप्पली को डाल कर मिलाते हैं और धीमी आंच पर पकाते हैं। पकने पर इसमें शहद मिला देते हैं।